-हिंदुत्व,व्यक्ति निर्माण और संगठन शक्ति यह बने Shop
संघ की स्थापना और विचारधारा
अमित शर्मा..
भारतीय राष्ट्र और उसकी चेतना के प्रति ऐसे ही भावों को आत्मसात कर 1925 के विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की गई। इसका उद्देश्य डा.हेडगेवार ने राष्ट्रीय अनुशासन और इस राष्ट्र के आधार हिन्दू संस्कृति की रक्षा को कहा,संघ का ध्येय वाक्य ‘संघे शक्तिः कलौ युगे’ (कलियुग में शक्ति संगठन में है) इसी विचार को मूर्त रूप देता है। संघ के तीन मूलभूत तत्व थे, पहला, हिंदू राष्ट्र की अवधारणा– भारत की पहचान उसके सनातन सांस्कृतिक Ethos में निहित है, जो अपने स्वरूप में हिंदू है। वैदिक, पौराणिक, जैन, बौद्ध, चार्वाक, सिख, प्रकृति पूजक सभी इस विराट हिंदू दर्शन के अविछेद्य अंग हैं। दूसरा, संघ ने व्यक्तिगत अनुशासन और चरित्र निर्माण को सर्वोपरि माना, बिना इनके राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है। समाज की जाग्रति भी उसके नागरिकों के चरित्र पर आधारित है, ऐसा भारतीय प्रज्ञा का मानना रहा है और संघ भी इसी को स्वीकार करता है। संघ का तीसरा और महत्वपूर्ण लक्ष्य है, संगठन की शक्ति– बिखरे हुए समाज को संगठित करना ही राष्ट्र निर्माण का आधार है, चूंकि हिंदू इस भूमि के नैसर्गिक निवासी हैं, अतः उनका उत्थान स्वयमेव राष्ट्र का उत्थान होगा, पुनः बताने की आवश्यकता नहीं है कि यहां ‘हिंदू’ शब्द किसी संकुचित धार्मिक पहचान का नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की समावेशी परंपरा का प्रतीक है।
संघ की स्थापना ऐसे काल में हुई, जब भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में कांग्रेस की महती भूमिका थी किन्तु उसकी भूमिका के परिणामों से कई सोचने-समझने वाले व्यक्तित्व निराश थे। 1920 के दशक तक भारत में एक प्रकार के मुस्लिम राजनीतिक अलगाववाद की शुरुआत हो चुकी थी। 1905 के बंगाल विभाजन के बाद हुए दंगें भविष्य के लिए कड़े संदेश थे। ऐसे समय में प्रज्ञा संपन्न व्यक्तियों में तत्कालीन राजनीतिक आंदोलनों के लिए शंका की दृष्टि स्वाभाविक ही थी, डॉक्टर हेडगेवार ने इन प्रश्नों का उत्तर हिन्दू समाज को संगठित करने में देखा। उनके बाद संघ का कार्यभार माधव सदाशिव गोलवलकर ने संभाला। सही मायनों में संघ के दर्शन की नीव गोलवलकर ने रखी।




