*राम आएंगे तो सांसे थम जाएंगी*
*राम आएंगे तो आंखे भर आएंगी*
*शुद्ध हो जाएगा मन,*
*मुक्त हो जाएगा तन*
*राम आएंगे*
*यह हजारों लाखों प्रतिज्ञाओं के पूरा होने का दिन है।*
*वे लाखों प्रण, जिन्हें ठानने वाले कब के स्वर्ग सिधार गए।*
*वे लाखों प्रण भी, जिन्हें युवकों ने भरी जवानी में ठाना और अब बुढ़ापे में पूरा कर लेंगे।*
*जो जीवित हैं, उनका रोम रोम भीष्म और भीम की गरिमा लिए हुए हैं।*
*जो चले गए, वे स्वर्ग से देख कर तृप्त हो रहे होंगे।*
*यह उन असंख्य युवकों का दिन है जो कारसेवा को निकले तो यह ठान कर निकले कि जबतक मन्दिर नहीं बन जाता, घर नहीं लौटेंगे।*
*अयोध्याजी की गलियों में साधु बन कर घूमते उन वीरों का प्रण पूरा हो रहा है।*
*यह उन जोशीले युवकों का दिन है जिन्होंने तय किया था कि जबतक मन्दिर नहीं बनता, विवाह नहीं करेंगे।*
*अब बूढ़े हो चुके वे लोग विवाह भले न करें, पर कल का दिन उनके लिए विवाह से भी बड़े उत्सव का दिन है।*
*यह उनका दिन है…*
*यह उन माताओं का दिन है जिन्होंने धर्मक्षेत्र में अपने लाल भेजे थे।*
*यह उन बहनों का दिन है जिन्होंने इस दिन के लिए अपनी राखियों की बलि दी थी।*
*यह उन पिताओं का दिन है जिनके योद्धा बेटे सरयू की धारा में बहा दिए गए।*
*उन लोगों के बच्चे वापस भले न आएं, पर आज उनकी प्रतीक्षा पूरी हो रही है।*
*उनके हुतात्मा बच्चों के प्रण पूरे हो रहे हैं, उनके जीवन का लक्ष्य पूरा हो रहा है।*
*यह उस बूढ़ी माता का दिन है जो पिछले बत्तीस वर्ष से मौन व्रत पर है।*
*उन असंख्य जीवित मृत लोगों का दिन है जिन्होंने कभी पगड़ी नहीं बांधी।*
*प्रण लिया था किसी पूर्वज ने, पर पीढ़ी दर पीढ़ी लोग निभाते चले गए।*
*कल जब उस कुल के वंशज अपने माथे पर पगड़ी रखेंगे तो वह उन अनाम पूर्वजों के राज्याभिषेक का क्षण होगा…*
*यह सरयु मइया का दिन है।*
*इन पाँच सौ वर्षों में जाने कितनी बार उनकी धारा में उनके पुत्रों का रक्त बहा है।*
*बालू भरे बोरे में युवकों के शव बांध कर उनकी गोद में दबा दिए गए, और माँ चुपचाप रोती रह गयी।*
*तब धारा में केवल सरयू के आँसू होंगे।*
*कल जब लोग उसी धारा में पुष्प बहाएंगे, तो युगों बाद शायद माँ मुस्कुरा उठेगी।*
*यह सभ्यता के विजय का दिन है।*
*यह अधर्म पर धर्म के विजय का दिन है।*
*यह राष्ट्र के मस्तक पर तिलक लगाने का दिन है।*
*प्रसन्न होइये, यह भारत का दिन है।*
*यह हमारा दिन है।*
*हम सब का दिन है…*
*जय जय सियाराम!*
*जय श्रीराम।*
*जगदीप सिंह, जिला प्रचारक, हरिद्वार*
*राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, उत्तराखंड*