कैलाश चन्याल
बेरीनाग (पिथौरागढ़)। उत्तराखंड निर्देशक माध्यमिक शिक्षा देहरादून द्वारा सरकारी अर्द्ध सरकारी विद्यालयों में प्रतिदिन प्रार्थना स्थल पर भागवत गीता के श्लोक पढ़ाये जाने का निर्देश जारी किया गया है।
इस संबंध में एससी एसटी शिक्षक एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष संजय कुमार टम्टा द्वारा निदेशक माध्यमिक शिक्षा को मेल से विरोध संबंधित ज्ञापन प्रेषित किया गया।
जिसमें कहा गया कि भगवत गीता एक धार्मिक ग्रंथ है, और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28(1) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि पूर्णतः या आंशिक रूप से सरकारी निधि से संचालित शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जा सकती। यह प्रावधान देश की धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान की भावना को बनाए रखने के लिए बनाया गया है। उक्त निर्देश संविधान के इस प्रावधान का उल्लंघन करता है और सरकारी स्कूलों में धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के सिद्धांत को कमजोर करता है। इसके अतिरिक्त, सरकारी स्कूलों में विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के छात्र अध्ययनरत हैं। किसी एक धार्मिक ग्रंथ के श्लोकों को अनिवार्य रूप से लागू करना अन्य धर्मावलंबियों, मतालंबियों और समुदायों के बीच असहजता और भेदभाव की भावना को जन्म दे सकता है, जो सामाजिक समरसता और समावेशी शिक्षा के उद्देश्यों के विपरीत है।
एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन, उत्तराखंड, इस निर्देश का पुरजोर विरोध करता है। उक्त आदेश को तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाने का अनुरोध करता है।हमारा मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तार्किकता और समावेशी मूल्यों को बढ़ावा देना है, न कि किसी विशेष धार्मिक ग्रंथ को प्रोत्साहित करना। हम आशा करते हैं कि आप इस विषय पर गंभीरता से विचार करेंगे और संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को बनाए रखते हुए उचित निर्णय लेंगे।