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 संगोष्ठी को सबोधित करते भारतीय शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डा. एनपी सिंह।

हरिद्वार।
कन्वेंशन सेंटर प्रयागराज में आयोजित संगोष्ठी में भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष एवं सेवानिवृत्त आईएएस डा. एनपी सिंह ने कहा कि भारतीय शिक्षा बोर्ड की स्थापना का उद्देश्य स्वदेशी शिक्षा पद्धति को पुनर्जीवित करते हुए आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय ज्ञान परंपरा का समन्वय स्थापित करना है। उन्होंने कहा कि आज देश को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो विद्यार्थियों में आत्मगौरव, भारतीयता, नैतिकता, नेतृत्व क्षमता और वैश्विक दृष्टि दोनों का विकास कर सके। इसी उद्देश्य को केंद्र में रखकर भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन किया गया है, जिसे राष्ट्रीय और राज्य बोर्डों के समकक्ष मान्यता प्राप्त है। डा. सिंह ने बताया कि बोर्ड के पाठ्यक्रम में वेद, उपनिषद, गीता, जैन और बौद्ध दर्शन, भारतीय शूरवीरों की कथाएँ, संवैधानिक मूल्य, गुरुकुल परंपरा और आधुनिक विज्ञान—प्रौद्योगिकी को संतुलित रूप से जोड़ा गया है। उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों को कहानियों और कविताओं के माध्यम से भारतीय दर्शनों से परिचित कराने तथा उच्च कक्षाओं में इन विषयों का विस्तृत अध्ययन कराने की व्यवस्था की गई है। पाठ्यक्रम में भारत के लगभग 12 महान नायकों की जीवन गाथाआें को भी शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों को केवल नौकरी योग्य नहीं बल्कि रोजगार सृजन में सक्षम बनाएगी। बोर्ड का पाठ्यक्रम यूपीएससी, जेईई, नेट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुरूप भी विकसित किया गया है। यह बोर्ड सीबीएसी के समकक्ष है, यह कक्षा 9 से 12 तक की स्कूलों को मान्यता देती है। कक्षा 1 से 8 तक के मान्यता प्राप्त विद्यालय भारतीय शिक्षा बोर्ड से मान्यता ले सकते हैं। विशिष्ट अतिथियों में संयुक्त शिक्षा निदेशक राम नारायण विश्वकर्मा, जिला विद्यालय निरीक्षक पीएन सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त कुल सचिव मेजर डा. हर्ष कुमार उपस्थित रहे। भारत स्वाभिमान के राज्य प्रभारी भगवान सिंह भी कार्यक्रम में सहभाग रहे। कार्यक्रम का संचालन बृज मोहन ने किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से भारतीय शिक्षा बोर्ड के मंडल समन्वयक राजन विश्वकर्मा, वीरेंद्र सिंह, आर्यन साहू, शुभम प्रयागराज एवं कौशाम्बी जनपदों के सैकड$ों विद्यालयों के प्रबंधक और प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

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