अलीगढ़/प्रमोद शर्मा। सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व होता है जो कि प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्विन माह की अमावस्या तिथि पर संपन्न होते हैं। इस वर्ष श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष 10 सितंबर शनिवार से प्रारंभ हो रहे हैं, जो कि 25 सितंबर रविवार तक रहेंगे।
वैदिक ज्योतिष संस्थान के प्रमुख स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण व पिंडदान जैसे कार्य करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है साथ ही कुंडली में मौजूद पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है। इन 15 दिनों में दान का भी विशेष महत्व माना गया है।
महामंडलेश्वर स्वामी श्री पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने पितृपक्ष एवं श्राद्ध के विषय में जानकारी देते हुए बताया
कि पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध 10 सितंबर को ही किया जायेगा। इस दिन उन सबका श्राद्ध किया जायेगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने की पूर्णिमा को हुआ हो, 11 सितम्बर प्रतिपदा तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किया जायेगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो इसे प्रौष्ठप्रदी श्राद्ध भी कहते हैं। द्वितीया तिथि का श्राद्ध तिथि के समयानुसार 11 सितम्बर को ही किया जायेगा जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की द्वितीया को हुआ हो। वहीं अमावस्या तिथि का श्राद्ध 25 सितम्बर को किया जायेगा,इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जायेगा, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने की अमावस्या को हुआ हो।साथ ही मातामह, यानी नाना का श्राद्ध भी इसी दिन किया जायेगा इसमें दौहित्र, यानी बेटी का बेटा ये श्राद्ध कर सकते हैं भले ही उसके नाना के पुत्र जीवित हों, लेकिन वो भी ये श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद पा सकता है।बस श्राद्ध करने वाले के खुद के माता-पिता जीवित होने चाहिए इसके अलावा जुड़वाओं का श्राद्ध, तीन कन्याओं के बाद पुत्र या तीन पुत्रों के बाद कन्या का श्राद्ध भी इसी दिन किया जायेगा। अज्ञात तिथियों वालों का श्राद्ध, यानि जिनके स्वर्गवास की तिथि ज्ञात न हो, उन लोगों का श्राद्ध भी अमावस्या के दिन ही किया जाता है।साथ ही पितृ विसर्जन और सर्वपैत्री भी इसी दिन मनाया जायेगा और अमावस्या के श्राद्ध के साथ ही इस दिन महालया की भी समाप्ति हो जायेगी।
स्वामी पूर्णानंदपुरी जी महाराज ने बताया कि श्राद्धपक्ष के इन पवित्र दिनों में लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन त्याग कर सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिये इस समय में अपने घर के बुजुर्गों और पितरों का अपमान भूलकर भी नहीं करना चाहिए।इस समय में कोई भी धार्मिक या मांगलिक कार्य जैसे मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश, नामकरण आदि भी वर्जित रहते हैं।